Friday, December 10, 2010

अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की

अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
तुम क्या समझो, तुम क्या जानो बात मेरी तनहाई की

कौन सियाही घोल रहा था वक़्त के बहते दरिया में
मैंने आँख झुकी देखी है आज किसी हरजाई की

वस्ल की रात न जाने क्यूँ इसरार था उनको जाने पर
वक़्त से पहले डूब गए तारों ने बड़ी दानाई की

उड़ते उड़ते आस का पंछी दूर उफक में डूब गया
रोते रोते बैठ गई आवाज़ किसी सौदाई की

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